26, नवम्बर, 2016
कई दिन हो गए, 500 और 1000 रुपयों के पुराने नोट अमान्य घोषित हुए। उसके दूसरे दिन ही बैंक और एटीएम बंद कर दिए गए, एटीएम तो तीसरे दिन भी बंद थे। अब जिनके पास 500 और 1000 रुपयों के नोट थे उनके बीच नोट बदलने या फिर बैंक से पैसे निकालने की अफरा-तफरी हो गयी। लगने लगी लंबी लंबी लाइनें एटीएम और बैंको के बाहर। ऐसा लग रहा था मानो रुपये मुफ्त मिल रहे हों। एक मेला सा लग रहा था ऐसी जगहों पर।
ज्योहीं कोई एटीएम ख़राब होता या फिर उसमें रकम ख़त्म हो जाता, झट से लोग भाग पड़ते दूसरी जगह। ऐसे में हम कैसे इससे अप्रभावित हो सकते थे। 4-5 नोट हमारे पास भी थे ऐसे, सो हम भी पहुँच गए पास के एक बैंक में जमा करवाने। बैंक में भीड़ बहुत ज्यादा लगी मुझे। फॉर्म भर लेने के बाद देखा तो दो लाइनें पुरुषों की लगी थी और दो महिलाओं की। पुरुषों की दोनों लाइनों में 30 - 30 लोग लगे रहे होंगे। 10-15 मिनट के इंतजार के बाद भी जब लाइन आगे नहीं खिसकी तो हमने सोचा कि आज पहले ही दिन इतनी भीड़ है तो कल से तो और कम होगी।
सो हमने बुद्धिमानी से काम लिया और अगले दिन आने का निश्चय करके लाइन से अलग हो गए और घर आ गए। दूसरे दिन सोचा कि आज जल्दी जाते हैं, टॉप 5 में रहेंगे तो हमारा काम जल्दी हो जाएगा। लेकिन जब बैंक पहुंचे तो देखा, लाइन बैंक बिल्डिंग के कैम्पस के मुख्य द्वार पर पहुँच चुकी है। अब हमने फिर दिमाग से काम लिया और नोट बदलवाने की सोची। इसके बाद लगाने लगे चक्कर बैंको के ताकि जिधर सबसे छोटी लाइन हो उधर ही खड़े हो जाएँ। लेकिन अफ़सोस, हर जगह पहले से ज्यादा ही लंबी लाइन दिखी।
अभी तक घर में रखे कैश भी दाल चावल चीनी सब्जी आदि खरीदने में ख़त्म हो चुके थे। सो अब हमने निश्चय किया कि अब बैंको के चक्कर लगाने में समय नष्ट न करेंगे और एटीएम से पैसे निकाल लेंगे। एक दिन में 2000 रुपए तो निकाले ही जा सकते हैं। अब लगे एटीएम के चक्कर लगाने, लेकिन हर जगह बैंको से भी दोगुनी या तीनगुनी ज्यादा लंबी लाइन दिखी। हमने एक बार फिर दिमाग से काम लिया और अगले दिन सुबह ही सुबह नजदीक के एटीएम जाने का निश्चय किया। 9:30 बजे सुबह लाइन में लगे, 20 - 25 लोग हमसे पहले थे। ठीक 11:00 बजे हम 100-100 के बीस नोट निकाल के विजयी मुस्कान के साथ एटीएम से निकले।
कसम, से ऐसी फीलिंग आ रही थी, मानो कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो। चेहरे से मुस्कान छिपे नहीं छिप रही थी, एक नया और अनोखा अनुभव जो पा चूका था।
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