Monday 28 November 2016

माँ का आँचल, सर्वोत्तम सुरक्षा कवच

पिछले दिनों अपने दोस्त के परचून की दुकान पर बैठ कर उससे गप्पे लड़ा रहा था। उसकी दुकान पर बच्चों के खाने की चीजें जैसे विभिन्न प्रकार के टॉफी, चॉकलेट और बिस्कुट मिलते हैं। इसलिए उसके ग्राहकों में ज्यादातर बच्चे ही होते हैं। उस दिन 2 - 3 साल का एक छोटा बच्चा आया और बाहर दुकान के दरवाजे पर चिपके पोस्टर पर हाथ रख कर वही टॉफी देने के लिए बोला जिसकी तस्वीर उस पोस्टर पर थी। दोस्त ने बताया कि ये ख़त्म हो गया है, "कल" ले लेना। बच्चा बोला आज ही तो "कल" है। 

फिर दोस्त  को याद आया कि यही बच्चा कल शाम को भी आया था इसी टॉफी के लिए तो दोस्त ने कहा था कि "कल" ले लेना, आज ख़त्म हो गया है। अब बच्चे को क्या जवाब दे। उसने सम्भलते हुए जवाब दिया, अभी तो सुबह है न, शाम को बाजार जाऊंगा तो लेता आऊंगा। इतना सुनने के बाद बच्चा चला गया लेकिन थोड़ी ही देर के बाद पुनः वापस आया एक रुपये का सिक्का लेके और बोला दूसरी टॉफी दे दीजिए। मेरे दोस्त ने 1 रुपये वाली बहुत सी टॉफियाँ दिखाई लेकिन बच्चे को एक भी पसंद नहीं आई। बच्चा बोला कि लॉलीपॉप दीजिये। 

दोस्त ने कहा, लॉलीपॉप 5 रुपये का आता है, और पैसे ले आओ। बच्चा बोला, "मम्मी इतना ही दी है, आप लॉलीपॉप दीजिए"। दोस्त ने कहा कि घर जाओ और मम्मी से 5 रुपये ले आओ। बच्चा बोला कि मम्मी और रुपये नहीं देगी, इसी में दीजिए। अब दोस्त सोचने लगा कि अगर 5 रुपये की लॉलीपॉप 1 रुपये में देता हूँ तो सीधे-सीधे 4 रुपये का घाटा होता है। लेकिन बच्चे की मासूमियत देखते हुए उसको निराश भी नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने 2 रुपये वाला लॉलीपॉप निकाला और बच्चे की तरफ बढ़ाया। 

लेकिन अबोध बालक समझ गया कि उसके साथ धोखा हो रहा है। उसने कहा कि ये नहीं, और 5 रुपये वाली लॉलीपॉप की तरफ इशारा करके बोला वो वाला दीजिए। अब दोस्त क्या करे, समझ नहीं पा रहा था कि बच्चे को कैसे समझाए। बच्चा 1 रुपये में 5 रुपये वाली लॉलीपॉप लेने की जिद पर अड़ा हुआ था। इसीलिए कोई चारा न पाकर दोस्त ने बच्चे से कहा कि पूरे 5 रुपये लाओगे तभी मिलेगा ये लॉलीपॉप। इतना सुनना था कि बच्चा बोला, "मम्मी को बोल दूँगा" और कहते हुए थोड़ा रुआंसा भी हो गया। 

"मम्मी को बोल दूंगा" कहते-कहते सुबकने भी लगा। अब दोस्त ने घाटे की परवाह नहीं करते हुए 5 रुपये वाली लॉलीपॉप निकाली और बच्चे को दे दिया। बच्चा भी मुस्कुराते हुए हाथ में 1 रुपये दिए और ख़ुशी-ख़ुशी चला गया। प्रसंग तो ख़त्म हो गया लेकिन मैं सोचने लगा। मुझे अपने बचपन के दिन याद आने लगे। बचपन में हमें भी हमारी माता जी सबसे बड़ी तारणहार लगती थी। जब भी हमें लगता था कि हमारे साथ नाइंसाफी हो रही है तो हम भी झट से सामने वाले को धमकाते थे कि मम्मी को बोल दूँगा। 

इसका वाक्य का असर भी होता था, सामने वाला डर जाता था और हमारे साथ कुछ गलत करने की हिम्मत नहीं करता था। जब कभी कोई हमें पीटने के लिए दौड़ता था या फिर हम कुछ शरारत करते थे तो हम झट से भागकर माँ के पास पहुँच जाते थे, माँ के पीछे या फिर उनके आँचल में छुप जाते थे। माँ हमेशा ही हमारा पक्ष लेती थी, हमारा बचाव करती थी। हमें लगता था कि माँ हमें हर मुसीबत से बचा लेगी, और बचाती भी थी। चाहे पिताजी का गुस्सा हो या मास्टर जी की डाँट, माताजी हमेशा बचाती थी। 

सच में, माँ की ममता अनमोल है, माँ का आँचल सर्वोत्तम सुरक्षा कवच है। 

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